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Monday, November 1, 2010

ईमानदारी से मिलती है कद्र..: कुणाल केमू






ईमानदारी से मिलती है कद्र..: कुणाल  केमू
मैंने बचपन में ही एक्टिंग शुरू कर दी थी। यह कभी नहीं सोचा कि इसकी वजह से मेरे पास पैसे हों, बड़ी गाड़ी हो या मैं लोकप्रिय हो जाऊं। जख्म मेरे करियर की अहम फिल्म थी। उसके बाद ही मैंने तय किया कि एक्टर ही बनना है। मैं वैसी ही फिल्में चुनता हूं, जो मैं खुद देखना चाहता हूं। मैंने क्वालिटी पर ध्यान दिया और कम फिल्में की हैं।
गोलमाल-3 मेरी आठवीं फिल्म होगी। इस बार नई कहानी है और कुछ नए किरदार आ गए हैं। यह फिल्म बच्चों को बहुत पसंद आएगी। रोहित शेट्टी ने ढेर सारे दृश्य बच्चों के लिए रखे हैं। यह साफ-सुथरी कामेडी है। पूरे परिवार के साथ इसे देख सकते हैं। मैं इस फिल्म में लक्ष्मण का रोल निभा रहा हूं। फिल्म में दो परिवार है, उनमें से एक परिवार का खास सदस्य हूं। मुझे कई अनुभवी कलाकारों के साथ काम करने का मौका मिला। मैं तो अभी सीख ही रहा हूं। यह मेरी पांचवीं कॉमेडी फिल्म होगी। सबसे पहले प्रियदर्शन के साथ ढोल की थी। उसके बाद ढूंढते रह जाओगे और फिर जय वीरू एक्शन कॉमेडी थी। मैं 99 को भी कॉमेडी ही कहूंगा, लेकिन उसमें व्यंग्य का पुट ज्यादा था। इधर आप देखें, तो हर फिल्म में ह्यूमर रहता है। गोलमाल-3 में ह्यूमर ज्यादा है। इस फिल्म में शुरू से अंत तक आप हंसते रहेंगे।
बचपन में फिल्में कीं, तो लोगों ने कहा कि चाइल्ड स्टार कभी हीरो नहीं बन पाते। मैं अभी आठ फिल्में कर चुका हूं, तो मैं तो ठीक ही कर रहा हूं। उम्र के हिसाब से मुझे सारी चीजें मिल रही हैं। मैं तो खुश हूं। सबसे अच्छा होने की चाह लगी रहती है। मैंने हमेशा अपने हिसाब से कुछ नया करना चाहा। फिल्म करने के साथ मार्केटिंग, स्टाइलिंग और पीआर को भी समझा। फिल्म इंडस्ट्री का तौर-तरीका समझा। धीरे-धीरे बड़ा हो रहा हूं। मैं सभी से सीखता रहता हूं। मैंने कभी ट्रेनिंग नहीं ली। सारी चीजें फील्ड में आकर फ‌र्स्ट हैंड एक्सपीरियंस से सीखा। मुझे किसी स्टारसन की तरह तरजीह नहीं मिली, लेकिन उनकी समस्याएं ज्यादा बड़ी हैं। मुझे तकलीफ नहीं है कि मेरे साथ कुछ क्यों नहीं हुआ? अपना काम ईमानदारी से करें, तो कद्र मिलती है।
मुझे परिवार से कुछ हुनर विरासत में मिले हैं। दादा जी कश्मीरी के नाटककार हैं। मेरे पिता रवि केमू श्याम बेनेगल के सहायक रहे। वे एक्टिंग के टीचर भी हैं। मेरी मां स्टेज पर परफॉर्म करती थीं। घर के माहौल का असर तो रहेगा ही। मैंने खुद बचपन में कैमरा फेस किया और फिर थिएटर करता रहा। यह मेरे नेचर में आ गया है। 1990 के बाद कश्मीर नहीं गया। बचपन में वहां पढ़ाई की थी। दादा मेरे जम्मू में रहते हैं। दादा और पिता के काम में विचार महत्वपूर्ण रहा। उन दोनों का कॉमर्स और पॉपुलर फॉर्म से ज्यादा रिश्ता नहीं रहा। जब मैंने एक्टर बनने की बात कही, तो उन्होंने समझाया कि ऐसा कुछ नहीं करना, जो हम ने किया। योजनाएं कभी पूरी नहीं होतीं। फिल्म इंडस्ट्री में कुछ भी तय नहीं कर सकते। हिंदी फिल्मों में ट्रेंड और फैशन चलता है। एक्टर के तौर पर समय के साथ चलना होता है। बस यही तमन्ना है कि काम करता रहूं.......








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